एक दिल दहला देने वाली रहस्यमयी कहानी, जो एक सुनसान स्टेशन और एक रहस्यमयी महिला के इर्द-गिर्द घूमती है। पढ़ें “काली रात की सवारी” – एक सस्पेंस से भरी ट्रेन यात्रा की हिंदी कहानी।
प्रस्तावना
रात की ट्रेनें अक्सर लंबी, शांत और नीरस होती हैं… लेकिन कभी-कभी यही सन्नाटा किसी गहरे रहस्य को जन्म देता है। प्रस्तुत है एक सच्ची लगने वाली कल्पनात्मक कहानी जो आपके रोंगटे खड़े कर देगी।
कहानी: काली रात की सवारी
अंधेरी रात थी। दिल्ली से लखनऊ जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन समय से थोड़ी देर से चली थी। प्लेटफॉर्म पर सन्नाटा पसरा था। कोच S5 में बैठे रवि की पहली रात की यात्रा थी।
सामने एक अधेड़ उम्र का आदमी बैठा था। उसने रवि को घड़ी दिखाते हुए अजीब सी मुस्कान दी—
“रात की ट्रेनें अपने राज़ खुद बताती हैं…”
रवि थोड़ा असहज हुआ।
करीब एक घंटे बाद ट्रेन एक अनजान से स्टेशन पर रुकी—‘मिर्जापुर घाट’। टाइम टेबल में ऐसा कोई स्टेशन नहीं था। ट्रेन से सिर्फ एक महिला चढ़ी—सफेद साड़ी में, चुपचाप। रवि ने पूछा:
“आप कहाँ उतरेंगी?”
महिला मौन रही।
सामने बैठा आदमी अब कोच में नहीं था। कोच एकदम सुनसान लगने लगा। और तभी रवि ने देखा—उस महिला की परछाईं ही नहीं थी। उसका चेहरा अब साफ था—नीला पड़ा हुआ, जैसे किसी का दम घुट गया हो।
महिला बोली:
“तेरा स्टेशन आ गया है… नीचे उतर…”
रवि की सांसें थम गईं। और वह बेहोश हो गया।
अंतिम दृश्य:
सुबह रवि की आँख खुली तो वह खाली कोच में अकेला था। स्टेशन का बोर्ड पढ़ा:
“मिर्जापुर घाट – बंद स्टेशन (1984 से)”
निष्कर्ष
यह कहानी एक काल्पनिक घटना है, लेकिन यह सोचने पर मजबूर कर देती है कि रात के सफर में हर मुसाफिर वैसा नहीं होता जैसा वह दिखता है।