28 मई 2025 को, केंद्र सरकार इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने पर गंभीरता से विचार कर रही है। यह कदम उनके दिल्ली स्थित आधिकारिक आवास पर नकदी की बरामदगी के बाद उठाया जा रहा है, जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त तीन सदस्यीय समिति ने सत्यापित किया है। इस प्रस्ताव को संसद के आगामी मानसून सत्र में पेश किया जा सकता है।
🔍 मामले की पृष्ठभूमि: मार्च 2025 की घटना
14 मार्च 2025 को होली के दिन, दिल्ली के लुटियंस क्षेत्र में स्थित जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास पर आग लगने की घटना हुई। दमकल कर्मियों ने आग बुझाने के दौरान वहां से जली हुई ₹500 के नोटों की बोरियां बरामद कीं। इस घटना ने न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के संभावित संकेतों को उजागर किया और उच्चतम न्यायालय ने इसकी जांच के लिए एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया।
🧑⚖️ सुप्रीम कोर्ट की जांच और सिफारिश
सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति ने जांच के बाद पाया कि जस्टिस वर्मा के आवास पर नकदी की बरामदगी के आरोपों में सच्चाई है। तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने 8 मई को अपनी सेवानिवृत्ति से पहले, समिति की रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को सौंपी और जस्टिस वर्मा को हटाने की सिफारिश की। रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस वर्मा ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद महाभियोग की प्रक्रिया पर विचार किया जा रहा है।
🏛️ महाभियोग प्रक्रिया: संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 124(4) और 217 के तहत, उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने के लिए संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। इसके लिए निम्नलिखित प्रक्रियाएं अपनाई जाती हैं:
- प्रस्ताव की पहल: राज्यसभा में कम से कम 50 सदस्य या लोकसभा में 100 सदस्य महाभियोग प्रस्ताव पर हस्ताक्षर करते हैं।
- जांच समिति का गठन: प्रस्ताव स्वीकार होने पर, एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया जाता है, जिसमें एक सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश, एक उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और एक प्रतिष्ठित न्यायविद शामिल होते हैं।
- रिपोर्ट और मतदान: यदि समिति आरोपों को सही पाती है, तो संसद के दोनों सदनों में प्रस्ताव पर मतदान होता है। प्रस्ताव पारित होने के लिए दोनों सदनों में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है।
- राष्ट्रपति की स्वीकृति: प्रस्ताव पारित होने के बाद, राष्ट्रपति न्यायाधीश को पद से हटाने का आदेश जारी करते हैं।
यदि यह प्रस्ताव पारित होता है, तो जस्टिस वर्मा भारत के संवैधानिक न्यायालय के पहले न्यायाधीश होंगे जिन्हें महाभियोग के माध्यम से हटाया जाएगा।
🗳️ राजनीतिक प्रतिक्रियाएं और विपक्ष की मांगें
कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने राज्यसभा के सभापति को पत्र लिखकर इस मामले में पारदर्शिता की मांग की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की समिति की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत करने की आवश्यकता पर बल दिया है, ताकि सांसद इस पर उचित निर्णय ले सकें।
📅 आगे की राह: मानसून सत्र में संभावित कार्रवाई
संसद का मानसून सत्र जुलाई के तीसरे सप्ताह से शुरू होने की संभावना है। इस सत्र में जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है। यदि प्रस्ताव को आवश्यक समर्थन मिलता है, तो यह भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर होगा।
📌 निष्कर्ष
जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव भारतीय न्यायपालिका में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। इस प्रक्रिया के माध्यम से न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त संदेश जाएगा और संविधान के तहत स्थापित प्रक्रियाओं का पालन सुनिश्चित होगा।
नोट: यह लेख सार्वजनिक स्रोतों पर आधारित है और इसमें दी गई जानकारी सूचना के उद्देश्य से है।


