📅 प्रकाशन तिथि: 30 जून 2025
✍️ लेखक: Bharatdrishti
🔴 क्या है मामला?
महाराष्ट्र सरकार ने हाल ही में दो सरकारी प्रस्ताव (Government Resolutions – GRs) को रद्द कर दिया है, जिनके तहत राज्य के स्कूलों में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की योजना थी। ये GRs क्रमशः 16 अप्रैल 2025 और 17 जून 2025 को जारी किए गए थे।
इस नीति के तहत सभी गैर-हिंदी भाषी स्कूलों (खासकर मराठी-माध्यम और अंग्रेज़ी-माध्यम स्कूलों) में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में पढ़ाया जाना अनिवार्य किया गया था।
लेकिन अब, भारी जन-विरोध और राजनीतिक दलों के दबाव के बाद, राज्य सरकार ने इन प्रस्तावों को वापस लेने का ऐलान कर दिया है।
🗣️ मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का बयान
मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने रविवार देर रात प्रेस वार्ता में घोषणा करते हुए कहा:
“मराठी हमारी मातृभाषा है और राज्य की पहचान का प्रतीक भी। सरकार ने हमेशा मराठी भाषा को प्राथमिकता दी है। हालांकि हिंदी राष्ट्रीय भाषा है, लेकिन किसी भी भाषा को थोपना ठीक नहीं है। इसलिए हमने यह GR वापस लेने का निर्णय लिया है।”
मुख्यमंत्री ने साथ ही यह भी कहा कि एक नई कमेटी बनाई जाएगी, जो राज्य में भाषा नीति की व्यापक समीक्षा करेगी और सुझाव देगी कि कौन‑सी भाषाएं किस स्तर पर पढ़ाई जाएं।
📚 थ्री-लैंग्वेज फॉर्मूला क्या होता है?
भारत में शिक्षा नीति के तहत “त्रिभाषा सूत्र” की अवधारणा है, जिसके तहत छात्रों को तीन भाषाएं पढ़ाई जाती हैं:
- मातृभाषा/राज्य की भाषा (जैसे मराठी)
- हिंदी / अंग्रेज़ी
- तीसरी भाषा (राज्य के अनुसार)
महाराष्ट्र में पहले यह तीसरी भाषा अधिकतर संस्कृत, उर्दू या कोई विदेशी भाषा हुआ करती थी। लेकिन अप्रैल 2025 में शिक्षा विभाग द्वारा जारी GR में हिंदी को तीसरी भाषा के रूप में लागू करने की घोषणा की गई थी।
🧠 विरोध क्यों हुआ?
इस फैसले का सबसे अधिक विरोध मराठी समर्थक संगठनों, विपक्षी दलों और कई अभिभावकों ने किया। उनका कहना था कि हिंदी को अनिवार्य बनाना राज्य की भाषाई विविधता और मराठी की महत्ता के खिलाफ है।
प्रमुख आपत्तियाँ:
- मराठी को दबाने की कोशिश कही गई।
- क्षेत्रीय पहचान पर खतरे का आरोप लगाया गया।
- गैर-हिंदी भाषी छात्रों पर अतिरिक्त भाषा का बोझ।
📊 आंकड़े: राज्य में भाषाई स्थिति
- महाराष्ट्र में 12 करोड़ से अधिक आबादी में से 77% लोग मराठी बोलते हैं।
- हिंदी बोलने वाले केवल लगभग 11% हैं, जो अधिकतर मुंबई और विदर्भ क्षेत्र में केंद्रित हैं।
- राज्य के 1.10 लाख स्कूलों में से 80% मराठी-माध्यम हैं।
इसलिए किसी भी नई भाषा को थोपना कई स्तरों पर सामाजिक और शैक्षणिक असंतुलन उत्पन्न कर सकता था।
🧾 शिक्षा विभाग की सफाई
राज्य के शिक्षा मंत्री दीपक केसरकर ने कहा:
“GR का उद्देश्य हिंदी थोपना नहीं था, बल्कि बच्चों को राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए एक अतिरिक्त भाषा सिखाना था। लेकिन लोगों की भावना का सम्मान करते हुए यह फैसला वापस लिया गया है।”
🔍 आगे क्या?
मुख्यमंत्री फडणवीस ने एक नवगठित भाषा नीति समिति का गठन करने की बात कही है, जो अगले दो महीनों में रिपोर्ट देगी। समिति में शिक्षाविद, भाषा विशेषज्ञ, सामाजिक कार्यकर्ता और छात्रों के प्रतिनिधि शामिल होंगे।
📢 राजनीतिक प्रतिक्रियाएं
- शिवसेना (उद्धव गुट): “यह महाराष्ट्र की जीत है। मराठी के सम्मान की रक्षा हुई।”
- MNS प्रमुख राज ठाकरे: “हमें हमारी मातृभाषा पर गर्व है, इसे कभी किसी के नीचे नहीं आने देंगे।”
- कांग्रेस: “सरकार पहले फैसला लेती है, फिर पीछे हटती है। यह अपरिपक्वता है।”
🌐 सोशल मीडिया पर प्रतिक्रिया
- #मराठी_भाषा_पर_गर्व ट्रेंड कर रहा है।
- हज़ारों शिक्षकों, अभिभावकों और छात्रों ने राहत की सांस ली है।
- ट्विटर पर 50,000+ ट्वीट्स GR रद्द करने के समर्थन में पोस्ट किए गए।
📌 निष्कर्ष
महाराष्ट्र सरकार द्वारा थ्री-लैंग्वेज पॉलिसी को वापस लेना एक बड़ा कदम है, जो राज्य की सांस्कृतिक पहचान और भाषाई विविधता की रक्षा करता है। यह निर्णय यह भी दर्शाता है कि जनभावनाओं के सम्मान के साथ-साथ सरकार को संवादात्मक और समावेशी नीति निर्माण की ओर बढ़ना चाहिए।



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